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जानिए भारत में प्राइवेट ट्रस्ट की आय पर कैसे लगता है टैक्स

January 10 2017   |   Shaveta Dua

अगर आपका कोई स्पेशल चाइल्ड है, अगली पीढ़ी को बड़ा बिजनेस ट्रांसफर करना है या किसी बड़ी संपत्ति की रक्षा करनी है तो प्राइवेट ट्रस्ट एक प्रभावी एस्टेट प्लानिंग टूल साबित हो सकता है। यूं तो एक प्राइवेट ट्रस्ट का गठन कई मुद्दों को सुलझाता है। लेकिन टैक्स के मद्देनजर प्राइवेट ट्रस्ट बनाने के लिए बहुत कुछ चाहिए। अलग-अलग स्ट्रक्चर में ट्रस्ट पर विभिन्न टैक्स लगाए जाते हैं। इनकम टैक्स के रूप में ज्यादा पैसा न कटे इसलिए समझदारी से प्लानिंग करने की जरूरत होती है, ताकि फायदे मिलते रहें।

प्राइवेट ट्रस्ट के प्रकार: चूंकि सिर्फ लाभार्थियों को ही प्राइवेट ट्रस्ट की आय उपलब्ध है। इसलिए टैक्स उसी स्ट्रक्चर में लगाया जाता है, जिसमें इनकम मिली है। टैक्स के मद्देनजर दो स्ट्रक्चर एेसे हैं, जिनमें प्राइवेट ट्रस्ट की इनकम पर टैक्स लगाया जाता है।

स्पेसिफिक ट्रस्ट: यहां सिंगल बेनिफिशरी की ओर से आय प्रतिनिधि को मिलती है। चूंकि यहां बेनेफिशरी का व्यक्तिगत हिस्सा पता होता है, इसलिए टैक्स उसी अनुसार लगाया जाता है। उदाहरण के तौर पर ट्रस्ट डीड में यह साफ तौर पर लिखा जाना चाहिए कि XYZ को ट्रस्ट की कुल आय का आधा या अॉथर का बेटा ट्रस्ट का सारा फायदा लेगा।

डिस्क्रिशनरी ट्रस्ट: जहां बहुत सारे लाभार्थी हों और व्यक्तिगत हिस्से का पता न हो। यहां ट्रस्ट की आय प्रतिनिधि को नहीं मिलती, बल्कि ट्रस्टी उसे निर्धारित करते हैं।

करदेयता (टैक्सेबिलिटी) : अगर प्राइवेट ट्रस्ट में किसी एक व्यक्ति के हिस्से का पता हो तो किसी लाभार्थी के हाथों में आने वाली आय पर टैक्स लगाया जाता है। जैसा कि इनकम टैक्स नियमों में लिखा है कि ट्रस्टी पर टैक्स का भुगतान करने की देनदारी होती है, इसलिए टैक्स लगाया जा सकता है और उसे आकलन प्रतिनिधि यानी ट्रस्टी से रिकवर किया जा जाता है। लेकिन यही नियम डिस्क्रिशनरी ट्रस्ट पर लागू नहीं होता, जहां आय का हिस्सा मालूम नहीं होता और ट्रस्टी तय करते हैं कि लाभार्थियों में कितना बांटा जाएगा। ऐसे ट्रस्ट की आय निर्धारित करने का काम ट्रस्टीज के हाथों में होता है, जिसके तहत वे आते हैं। यह नियम तब लागू होता है, जब ट्रस्ट की आय स्रोत केवल उसकी प्रॉपर्टी से होती है। स्थिति उस वक्त अलग होती है जब एक ट्रस्ट की आय के अन्य स्रोत होते हैं,जिसमें बिजनेस भी शामिल होता है।

बिजनेस इनकम पर टैक्स: एेसे कई मामले हैं, जहां ट्रस्ट अपना खुद का बिजनेस शुरू कर मुनाफा कमाने लगता है। इस मामले में बिजनेस से मिला फायदा ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है। ट्रस्ट का मालिक या ट्रस्टी इस पर दावा नहीं कर सकते। प्राइवेट (स्पेसिफिक) ट्रस्ट की बिजनेस इनकम पूरी आय पर लगाई जाती है। हालांकि इसमें कुछ छूट भी हैं, जो नीचे दी गई हैं:

*अगर एक प्राइवेट ट्रस्ट रिश्तेदारों के फायदे के लिए वसीयत द्वारा बनाया गया है।

*अगर ट्रस्ट का गठन किसी खास रिश्तेदार को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है

*यह सेटलर द्वारा घोषित किया हुआ इकलौता ट्रस्ट है।

इन सभी मामलों में, अगर बिजनेस आय भी है तो इस पर उसी दर से टैक्स लगाया जाता है, जितना लाभार्थियों के हाथों में आने वाली आय पर लगाई जाती है।

लेकिन इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि जब आप एक ट्रस्ट बनाते हैं, तो उस पर टैक्स लगना भी अनिवार्य है। प्राइवेट ट्रस्ट की इनकम पर टैक्स ज्यादा नहीं लगेगा, यह सुनिश्चित करने के लिए पढ़िए कुछ सुझाव दिए :

*प्राइवेट ट्रस्ट के जरिए किसी भी व्यावसायिक गतिविधि को चलाने से बचना चाहिए।

*यह भी सुनिश्चित करें कि लाभार्थियों का एक ही समूह एक से ज्यादा ट्रस्ट में नहीं बनाया गया है।

*अगर ट्रस्ट आपके नाबालिग बच्चे, पति या पत्नी के लिए है तो यह सुनिश्चित करें कि पैसा पिता या पति के जरिए नहीं हैं, क्योंकि उस स्थिति में आय उनके साथ मिल जाएगी।

*बड़े बेटे या बेटी के लिए १०० प्रतिशत विशिष्ट लाभार्थी प्राइवेट ट्रस्ट बनाएं ताकि भविष्य में बेटा या बेटी की शादी होने के बाद उसके रिश्तेदार उस पैसे का गलत इस्तेमाल नहीं करें।




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