क्या गैर-कानूनी था नोटेबंदी का फैंसला
8 फरवरी 2017 को लोकसभा ने विनिर्दिष्ट बैंक नोट (देनदारियों की समाप्ति) विधेयक, 2017 को पास किया था। इसके तहत चलन से बाहर हो चुके 500 और 1 हजार रुपये के पुराने नोटों को रखना, लेना और ट्रांसफर करना अपराध है। इस विधेयक ने चलन से बाहर हुए नोटों पर आरबीआई और केंद्र सरकार की देयता को खत्म कर दिया है।
8 नवंबर को रात 8 बजे पूरा देश उस वक्त हैरान रह गया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक सुनामी लाते हुए 500 और एक हजार रुपये के रूप में देश की 86 प्रतिशत करंसी को अवैध घोषित कर दिया था। उस दिन के बाद से रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया यानी आरबीआई और केंद्र सरकार ने नोटबंदी के कारण लोगों की परेशानियां कम करने के लिए कई कदम उठाए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाओं की बाढ़ आ गई थी, जिसमें इस कदम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नोटबंदी कानूनी है?
इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने भी भेजा गया था। प्रॉपगाइड आपके सामने इस आदेश के कानूनी पहलुओं को लेकर आया है, जिसने देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी।
आर्टिकल 300-ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: मौलिक अधिकारों की सूची से मिटाए जाने वाला इकलौता संपत्ति का अधिकार था। वहां से हटाकर इसे संवैधानिक अधिकारों में डाल दिया गया। तो क्या संपत्ति के संवैधानिक अधिकार के तहत नकद पर प्रतिबंध वैध है? हां, क्योंकि कैश और बैंक अकाउंट संपत्ति हैं। आरबीआई बनाम जयंतीलाल के 1978 के डीमॉनेटाइजेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह सिर्फ संपत्ति का नियमन नहीं है, जिस पर सरकार बहस कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि आर्टिकल 300 ए के तहत राज्य किसी व्यक्ति को 'कानून' के जरिए ही प्रॉपर्टी से वंचित कर सकता है, न कि एग्जिक्यूटिव नोटिफिकेशन के जरिए। 1978 के डीमॉनेटाइजेशन में मौजूद रही करंसी का केवल 1 पर्सेंट हिस्सा अवैध करार दिया गया था।
-रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया एक्ट, 1934 के सेक्शन 26 (2) के तहत केंद्रीय बैंक की सिफारिश पर केंद्र सरकार भारत के गजट में नोटिफिकेशन पास कर किसी भी सीरीज के नोटों को अवैध टेंडर घोषित कर सकती है। किस तारीख से डीमॉनेटाइजेशन लागू होगा, यह इस सेक्शन का आधार है। इसे आरबीआई की ओर से केंद्र सरकार तय नहीं कर सकती।
मौलिक अधिकारों का संक्षेप: नोटबंदी के कारण आम जनता को बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा, क्योंकि इस कारण से उन्हें अपनी रोजी-रोटी से हाथ धोना पड़ा। यह कारोबार करने का अधिकार आर्टिकल 19 (1) (जी) और उन 100 लोगों के जीने के अधिकार (आर्टिकल 21) का उल्लंघन है, जिनकी लंबी बैंक कतारों में खड़े रहने के दौरान मौत हो गई थी। हालांकि मौलिक अधिकारों में कटौती करने का सरकार का अपना एक दायरा है, इसलिए उसे साबित करना होगा कि प्रतिबंध जायज था।
संसदीय कानून की जरूरत: डीमॉनेटाइजेशन के पिछले दो मौकों (1956 और 1978) पर यह कानून एक अध्यादेश के तहत लागू किया गया था। लेकिन इस बार यह सरकारी नोटिफिकेशन के जरिए लागू हुआ। तर्क है कि इस आदेश से लोगों का जीना मुहाल हो गया, इसलिए सिर्फ नोटिफिकेशन पर्याप्त नहीं हो सकता।
आर्टिकल 19 (6) का कोई महत्व नहीं: केंद्र सरकार संविधान के आर्टिकल 19 (6) के पीछे छिपना चाहती है, लेकिन उसकी यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है। आर्टिकल 19 (6) कहता है कि आर्टिकल 19 (1) (जी) के तहत किसी भी मौजूदा कानून के संचालन पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यह सरकार को लोगों के हित में कोई भी कानून लागू करने से रोकता है। हालांकि इस कानून के सब क्लॉज के तहत अधिकारों को सीमित किया जा सकता है। लेकिन आर्टिकल 19 (6) का अपवाद केंद्रीय सरकार के पास उपलब्ध नहीं है, क्योंकि नोटिफिकेशन पुलिस अधिकारों से परे था।