जानिए मेट्रो कैसे बदलेगी नोएडा-ग्रेटर नोएडा के रियल एस्टेट की सूरत
राजधानी दिल्ली से करीब होने के कारण नोएडा हमेशा से घर खरीदारों की पसंदीदा जगह रहा है। लेकिन जिन लोगों ने इस वजह से नोएडा या ग्रेटर नोएडा में घर लिया है वह जल्द ही मेट्रो का लुत्फ ले सकेंगे। केंद्रीय कैबिनेट ने 24 मई को 29 किलोमीटर लंबे नोएडा-ग्रेटर नोएडा रेल प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इसका निर्माण नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन कर रही है। इस मेट्रो लाइन को बनाने में रु 5,503 करोड़ रुपये आएगी। यह लाइन नोएडा के सेक्टर 71 से शुरू होगी और दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन से जुड़ेगी। दिल्ली मेट्रो फिलहाल नोएडा सिटी सेंटर तक जाती है और इसे ही आगे बढ़ाकर सेक्टर 62 तक पहुंचाया जा रहा है ताकि यह रूट बनाया जा सके। यह ग्रेटर नोएडा के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो एक जाना-माना रियल एस्टेट मार्केट है और नेशनल कैपिटल रीजन यानी एनसीआर में घर खरीदारों को किफायती मकान खरीदने का विकल्प देता है। कनेक्टिविटी एक प्रमुख कारण हैं , जिसकी वजह से ग्रेटर नोएडा में प्रॉपर्टी की वैल्यू उस तरह नहीं बढ़ सकी, जैसी उम्मीद थी। लेकिन अब स्थिति बदलने वाली है। उम्मीद है इलाके का रिहायशी और व्यवसायिक रियल एस्टेट जल्द ही फलने-फूलने लगेगा।
ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तक पहुंच बनने से नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन और ग्रेटर नोएडा में घरों की कीमतों और किरायों में बढ़ोतरी होगी। दफ्तरों और दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य हिस्सों तक भी पहुंच बढ़ेगी, जिससे नोएडा में प्रॉपर्टी निवेश एक लुभावना विकल्प बन जाएगा। फिलहाल ग्रेटर नोएडा में औसतन प्रॉपर्टी का रेट रु 2,500 प्रति स्क्वेयर फुट है, जबकि एक खरीदार को नोएडा एक्सटेंशन में इतने ही माप के लिए औसतन 3,000 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। नोएडा के रियल एस्टेट के विकास में योगदान देने के अलावा यह मेट्रो लाइन कई और समस्याओं को भी सुलझाएगी।
जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा लोग नोएडा और ग्रेटर नोएडा में आकर बसेंगे, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भी थोड़ी राहत मिलेगी। क्योंकि यहां सस्ते घरों के विकल्प काफी कम हैं और अन्य राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है। दिल्ली की सड़कों पर जाम की समस्या से भी थोड़ी मुक्ति मिलेगी, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोग काम पर जाने के लिए मेट्रो को चुनेंगे। यहां ये भी बताना जरूरी है कि प्रशासन दिल्ली की सड़कों को जाम मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन अब तक मन-माफिक नतीजे मिलने बाकी हैं। यहां यह भी बताना अहम है कि जाम की समस्या से निपटने के लिए दिसंबर 2016 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अॉड-ईवन फॉर्म्युला लागू किया था।
भारत के टॉप इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट्स संस्थानों के वायुमंडलीय वैज्ञानिकों, आईआईटी (इंडियन इंस्टिट्यूट अॉफ टेक्नोलॉजी) और आईआईएम (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट) की जॉइंट स्टडी के मुताबिक, अॉड-ईवन फॉर्म्युला प्रदूषण का स्तर दो से तीन प्रतिशत तक घटा सकता है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि एेसे कदम कोई ठोस नतीजे देने में विफल भी साबित हो सकते हैं।
मेट्रो के आने से सड़कों पर वाहनों की आवाजाही में कमी आएगी। किसी जगह पहुंचना आसान और सड़कों पर बीतने वाला समय कम हो जाएगा। इतना ही नहीं प्रदूषण का स्तर भी घट जाएगा। इस प्रोजेक्ट से कई लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। कंस्ट्रक्शन और अॉपरेशन फेज में काफी अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर लोगों को मिलेंगे।
अब आगे क्या:
-नवंबर 2014 में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एक खास संस्था का गठन किया गया था। हालांकि इस साल जनवरी में नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड ने सब्सिडी ब्याज दर पर मेट्रो कॉरिडोर के लिए रु 1,587 रुपये मंजूर किए हैं।
-अब मेट्रो प्रोजेक्ट को नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड को केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की 50:50 संयुक्त रूप से स्वामित्व वाली कंपनी में कन्वर्ट करके लागू किया जाएगा।
-प्रोजेक्ट के पूरे होने की डेडलाइन अप्रैल 2018 रखी गई है। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की एक रिलीज के मुताबिक प्रोजेक्ट की 70 परसेंट प्रोग्रेस हो चुकी है और कुल वित्तीय प्रगति का 40 प्रतिशत हासिल कर लिया गया है।
-प्रोजेक्ट को केंद्रीय मेट्रो अधिनियम, मेट्रो रेलवे (निर्माण का काम) अधिनियम, 1978 व मेट्रो रेल (ऑपरेशन एवं मेंटेनेंस) अधिनियम 2002 के कानूनी ढांचे के तहत कवर किया जाएगा।