जानिए अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टीज पर वैट और सर्विस टैक्स के बारे में हर जानकारी
राकेश (बदला हुआ नाम) का हमेशा से खुद का घर लेने का सपना था। सैलरी बढ़ने के बाद वह अपने सपने को सच करने के और भी करीब आ गए। उन्होंने कुछ अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टीज भी देखीं, जो उसके 60 लाख के बजट में आ रही थीं। जैसे ही वह पैसा देने को तैयार हुए, उन्होंने बिल्डर से अपार्टमेंट की असली कीमत पूछी। उसे एक पेपर दिया गया, जिसमें सभी कीमतें लिखी हुई थीं। इसमें दो अतिरिक्त चार्ज मौजूद थे-वैल्यू एडेड टैक्स यानी वैट और सर्विस टैक्स। इनके बारे में राकेश को भी कुछ मालूम नहीं था।
क्या आप भी राकेश की तरह इन दो चार्जेज से बेखबर हैं?
अगर आपका जवाब हां है तो जान लीजिए कि सभी निर्माणाधीन संपत्तियों के लेनदेन में सर्विस टैक्स और वैट लगता है। हर राज्य में इसकी वैल्यू अलग-अलग हो सकती है। यह निर्भर करता है कि प्रॉपर्टी कहां स्थित है। हालांकि जीएसटी के लागू होने के बाद केंद्र और राज्यों में लगने वाले सभी टैक्स खत्म हो गए हैं और पूरे देश में हर जगह सिर्फ एक टैक्स लागू है।
नोट: एक अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी को तीन भागों में बांटा जाता है। पहला हिस्सा जमीन की कीमत का होता है, जिस पर कोई वैट या सर्विस टैक्स नहीं लगता। दूसरा हिस्सा मटीरियल की कीमत का होता है, जिस पर वैट देना पड़ता है। तीसरा हिस्सा निर्माण की कीमत का है, जिसमें लेबर चार्जेज शामिल होते हैं और इसे सर्विस की तरह माना जाता है। इसलिए सर्विस टैक्स इस चीज पर लगाया जा सकता है।
आइए आपको इन टैक्स और इसके पीछे की कैलकुलेशन के बारे में बताते हैं:
बिल्डर्स जो कंस्ट्रक्शन सर्विस ग्राहकों को देते हैं, उस पर केंद्र सरकार सर्विस टैक्स चार्ज करती है। वर्तमान में सर्विस टैक्स का रेट भारत में 15 प्रतिशत है। संपत्ति की मूल लागत का आप भुगतान करते हैं, उसमें जमीन और कंस्ट्रक्शन की कीमत भी शामिल होती है। लेकिन सर्विस टैक्स सिर्फ कंस्ट्रक्शन वाले हिस्से पर ही लागू होता है। इससे पहले सर्विस टैक्स की कैलकुलेशन जरा मुश्किल थी। सरकार ने कॉम्पलेक्स, बिल्डिंग और सिविल स्ट्रक्चर के कंस्ट्रक्शन की सर्विसेज की दो दरों में कमी की थी। रिहायशी इकाइयों, जिसमें कार्पेट एरिया (दीवारों के अंदर का एरिया) दो हजार स्क्वेयर फीट और उसकी कीमत 1 करोड़ रुपये से कम है, वहां 75 प्रतिशत की कमी की थी। यह कमी दूसरी यूनिट्स के शुल्क राशि का 70 प्रतिशत था। हालांकि इसमें कई शर्तों को पूरा करना जरूरी था।
1 अप्रैल, 2016 से सरकार ने कमी का मानकीकरण कर दिया है। यानी रिहायशी संपत्तियों पर अब से प्रभावी सर्विस टैक्स 4.5 प्रतिशत लगेगा। वहीं अन्य चीजों जैसे किसी खास लोकेशन का चार्ज (पीएलसी) , फ्लोर राइजिंग चार्ज (एफआरसी) , मेंटेनेंस चार्ज और क्लब हाउस पर भी सर्विस चार्ज पूरी कीमत पर लगेगा। इन सब मामलों में सर्विस टैक्स 15 प्रतिशत है। बाहरी विकास शुल्क और बुनियादी ढांचे के विकास शुल्क (ईडीसी / आईडीसी) को सर्विस टैक्स की सीमा से बाहर रखा गया है। साथ ही पार्किंग चार्जेज पर भी कोई सर्विस टैक्स नहीं देना पड़ेगा। सर्विस टैक्स सिर्फ उन्हीं संपत्तियों पर लगेगा, जो सीधे बिल्डर से खरीदी गई हैं। रीसेल प्रॉपर्टी की खरीद के मामले में यह देना जरूरी नहीं है, क्योंकि वहां किसी तरह की सर्विसेज ही नहीं दी गईं।
हाउजिंग फॉर अॉल मिशन और प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत जीएसटी में सर्विस टैक्स पर छूट उन सर्विसेज में भी जारी रहेगी, जिसमें लेबर कॉन्ट्रैक्ट्स, निर्माण, कमीशनिंग, इंस्टॉलेशन, कंप्लीशन, फिटिंग, रिपेयर, रखरखाव, रेनोवेशन या सिविल स्ट्रक्चर में तब्दीली की गई हो। इसके अलावा सर्विस टैक्स एक रिहायशी यूनिट मसलन खुद के घर, विला या बंगले पर लागू नहीं होगा। किफायती आवासों पर भी कोई सर्विस टैक्स नहीं लगेगा। इसलिए, एक आवास परिसर में प्रति घर 60 वर्ग मीटर तक के कार्पेट एरिया वाले घरों पर सर्विस टैक्स नहीं लगाया जाएगा।
वैट
यह टैक्स सामानों की ब्रिकी पर लगाया जाता है। निर्माणाधीन संपत्तियों के मामले में कुछ राज्यों में मालिकाना हक बिल्डर से ग्राहक तक सेल अग्रीमेंट के रूप में जाना ही वैट है। उदाहरण के तौर पर मुंबई और पुणे में एक प्रतिशत का वैट अग्रीमेंट वैल्यू पर लगता है। वहीं बेंगलुरु में यह 5 प्रतिशत है। दूसरी ओर अगर आप नोएडा, चेन्नई या कोलकाता में अपार्टमेंट खरीदते हैं तो इस पर कोई वैट नहीं लगाया जाएगा।
किन्हें यह टैक्स चुकाना होगा?
यूं तो सरकार को वैट और सर्विस चुकाना बिल्डर का काम है। वह इसकी कीमत ग्राहकों से रिकवर कर लेते हैं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि बिल्डर और ग्राहकों के बीच अग्रीमेंट में क्या तय हुआ है। अगर आप वैट और सर्विस टैक्स नहीं चुकाना चाहते तो यह बात बिल्डर से साथ आपके अग्रीमेंट में भी लिखी होनी चाहिए।
जीएसटी से क्या होगा?
जीएसटी लागू होने के बाद रियल एस्टेट की लेनदेन में कोई वैट या सर्विस टैक्स नहीं देना होगा। वहीं ये टैक्स रेडी टू मूव अपार्टमेंट्स या फ्लैट की रीसेल पर भी लागू नहीं होंगे। जीएसटी भी एक तय कीमत पर ही चार्ज होगा। एक जुलाई से जीएसटी लागू होने के बाद निर्माणाधीन संपत्तियों पर 12 प्रतिशत टैक्स लगेगा, लेकिन पूरे हो चुके या रेडी टू मूव अपार्टमेंट्स पर नहीं। रियल स्टेट एक्सपर्ट्स कहते हैं कि स्टैंप ड्यूटी और प्रॉपर्टी टैक्स अचल संपत्तियों पर लागू हो सकते हैं।