इन 7 तरीकों से आप दे सकते हैं वसीयत को चुनौती
May 15 2024 |
Shaveta Dua
आमतौर पर एक वसीयत तो चुनौती देना बहुत मुश्किल है। 90 प्रतिशत वसीयतें बिना चुनौती के ही पास हो जाती हैं। इन्हें कोर्ट वसीयतकर्ता या वसीयत बनाने वाले की आवाज के रूप में देखता है, जो अब अपना पक्ष रखने के लिए मौजूद नहीं है। कोर्ट वसीयतों पर काफी यकीन करती हैं। लेकिन अगर आपकी वसीयत में कोई रुचि है तो आप उसे चुनौती दे सकते हैं। अगर आप कोर्ट में सही साबित हुए तो वसीयत का कुछ हिस्सा या पूरा अमान्य करार कर दिया जाएगा। प्रॉपगाइड आपको वह 7 आधार बता रहा है, जिनके तहत आप वसीयत को चुनौती दे सकते हैं।
सही निष्पादन का अभाव: एक वैध वसीयत लिखित में होनी चाहिए। उस पर दो गवाहों की मौजूदगी में वसीयतकर्ता के दस्तखत होने चाहिए। गवाहों को भी वसीयत अटेस्ट करनी होती है। अगर इस प्रक्रिया के तहत काम नहीं हुआ तो कोर्ट में इसे चुनौती दी जा सकती है।
बिना इच्छा बनाई गई वसीयत: यहां आपको साबित करना होगा कि वसीयतकर्ता का विल बनाने का इरादा नहीं था। यह अर्जी बहुत कम लगाई जाती है, क्योंकि इसे साबित करना बहुत मुश्किल है।
वसीयतनामा क्षमता का अभाव: कानून के मुताबिक 18 साल से बड़े लोग ही वसीयत बना सकते हैं। माना जाता है कि व्यस्कों में वसीयत करने की क्षमता होती है। इसे बुढ़ापे या पागलपन के आधार पर चुनौती दी जा सकती है या फिर वसीयतकर्ता किसी पदार्थ के नशे में था अथवा उसमें वसीयत बनाने की मानसिक क्षमता नहीं थी। असल में मानसिक क्षमता के आधार पर वसीयत को चुनौती देने पर आपको यह दिखाना होगा कि वसीयत बनाने वाले को निर्माण के वक्त इसके नतीजों के बारे में मालूम नहीं था।
ज्ञान की कमी या मंजूरी: यहां आप यह बात रख सकते हैं कि जब वसीयतकर्ता ने दस्तावेजों पर दस्तखत किए तब उन्हें यह मालूम नहीं था कि इसमें है क्या।
किसी के प्रभाव में: आप वसीयत को इस आधार पर भी चुनौती दे सकते हैं कि वह धोखाधड़ी, जालसाजी या किसी के प्रभाव में आकर बनवाई गई है। एेसा तब होता है, जब कोई शख्स खुद प्रॉपर्टी में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पाने के लिए वसीयतकर्ता को प्रभावित कर रहा हो।
धोखाधड़ी या जालसाजी: वसीयत धोखे या जालसाजी से बनवाई गई है, इसके लिए सबूत जुटाने का जिम्मा आपके ही हाथ में होगा।
निरसन: परिवार द्वारा दावा: अगर वसीयत में पर्याप्त हिस्सा नहीं मिला है तो परिवार के सदस्य इस बात पर भी दस्तावेज को चुनौती दे सकते हैं। कानून के मुताबिक परिवार का मुखिया ही अन्य सदस्यों की अच्छी तरह देखभाल के लिए जिम्मेदार है, जैसा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में लिखा है। अगर वसीयत में इन लोगों के लिए उचित प्रावधान न किए गए हों या आश्रय के कानून के तहत उन्हें हक न मिला हो तो वह फैमिली कोर्ट या हाई कोर्ट में दावा ठोक सकते हैं।