जानिए क्या दूसरी शादी के बाद भी विधवा को पहले पति की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा?
March 07 2017 |
Proptiger
क्या किसी विधवा का किसी और शादी करने के बावजूद अपने पूर्व पति की संपत्ति में अधिकार होगा? इस सवाल से समाज के कई लोगों को दो चार होना पड़ता है। इसके बारे में जो जानकारियां उपलब्ध हैं, ज्यादातर कानूनी भाषा में हैं। इसलिए लोगों को समझने में दिक्कतें होती हैं। लेकिन प्रॉपटाइगर इसी मुद्दे पूरी जानकारी दे रहा है, जो आपके लिए जाननी बेहद जरूरी हैं।
इसी साल 5 मार्च को दिल्ली की अदालत ने एक सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया था कि एक विधवा का उसके पति द्वारा खरीदी गई संपत्ति पर अधिकार होगा। लेकिन उसकी बेटी और दामाद उस पर दावा नहीं कर पाएंगे। कोई ने यह फैसला 65 वर्षीय लाजवंती देवी के मामले में सुनाया था, जो अपनी बेटी और दामाद के खिलाफ कोर्ट गई थी। दोनों ने शास्त्री नगर स्थित मकान का एक हिस्सा खाली करने से इनकार कर दिया था, जो लाजवंती के पति ने उनके नाम पर खरीदा था। अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज कामिनी लाउ ने महिला को प्रॉपर्टी का मालिक माना था, जिनके पति ने साल 1996 में अपनी पत्नी के नाम पर यह संपत्ति ली थी। उनके निधन के बाद बेटी और दामाद का संपत्ति पर अनुमोदक कब्जा (परमिसिव पोजेशन) था।
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अर्चना साहू (23) अपने पति के साथ खुशहाल शादीशुदा जिंदगी बिता रही थी। लेकिन एक सड़क हादसे में पति की मौत के बाद उनके दोस्त और रिश्तेदारों ने उन्हें फिर से शादी करने की सलाह दी। परिवार वालों के दबाव में आकर उन्होंने दूसरी शादी कर ली। लेकिन वह यह देखकर हैरान रह गई कि उनके पूर्व सास-ससुर उसे उसके स्वर्गवासी पति की संपत्ति, जिसमें उन्होंने भी थोड़ा भुगतान किया था, में से एक फूटी कौड़ी भी देने को राजी नहीं थे। इससे दुखी होकर उन्होंने अदालत का रुख किया। उनके वकील ने बताया कि उनके पूर्व ससुराल वाले पुराने पड़ चुके हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 के प्रावधानों पर भरोसा कर रहे थे। इस पुराने कानून में कहा गया है कि अगर किसी महिला के पति की मौत हो जाती है और वह बिना इजाजत के दूसरी शादी कर लेती है तो स्वर्गवासी पति की संपत्ति पर उसका अधिकार खत्म हो जाएगा और पति के अन्य वारिस उत्तराधिकारी होंगे।
वहीं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के सेक्शन 8, में पुरुषों के उत्तराधिकार के मामले के आम नियम बताए गए हैं। इसके मुताबिक :
-फर्स्ट टू क्लास-1 वारिसों में स्वर्गवासी शख्स के बच्चे, विधवा और मां शामिल है।
-सेकंड टू क्लास-11 में उसके पिता और भाई-बहन आते हैं।
-तीसरे में मृतक (जिनका संबंध पुरुष से हो) के पूर्वज या सगोत्र आते हैं।
-चौथे में मृतक (जिनका संबंध महिला से हो) के पूर्वज या सगोत्र आते हैं।
इस वजह से कोर्ट ने अर्चना के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी के बाद भी महिला क्लास-1 वारिसों के तहत आती है और उसके मृत पति के रिश्तेदार क्लास-2 के वारिसों में। जज ने यह भी कहा कि अगर महिला के पति की मौत भी हो जाए तो भी उसकी चल और अचल संपत्ति पर उसकी पत्नी का दूसरी शादी के बाद भी अधिकार खत्म नहीं होता।
लेकिन इसी कड़ी में हिंदू उत्तराधिकार कानून का सेक्शन 23 जॉइंट फैमिली द्वारा बनाए गए एक घर के विभाजन को लेकर महिला की मांग को उस वक्त तक रोकता है, जब तक कोई पुरुष वारिस प्रॉपर्टी का बंटवारा न कर दे। इस वजह से अर्चना को तब तक इंतजार करना होगा, जब तक उसके मृत पति के परिवार का मुखिया कानूनी वारिसों को उनका हिस्सा नहीं दे देता। गौरतलब है कि साल 2005 में इस कानून में प्रावधान कर बेटियों को भी बेटों के समान अधिकार दिए गए। इसके मुताबिक वह भी प्रॉपर्टी पर हक जता सकती हैं। लेकिन क्या विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार है, इस पर कोई बात नहीं की गई। साल 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि अगर कोई विधवा दूसरी शादी कर लेती है तो उसे उसके मृत पति की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार नहीं किया जा सकता।