जीएसटी से घर खरीदने वालों की नहीं कटेगी जेब, मकानमालिकों को भी होगा फायदा
May 10, 2019 |
Sunita Mishra
1 जुलाई से पूरे देश में लागू हुए गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी से घर खरीदने वालों को शानदार तोहफा मिला है। वन नेशन वन टैक्स सिस्टम के तहत रेडी टू मूव घरों के बजाय अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टीज में निवेश करने से ग्राहकों को ज्यादा फायदा मिलेगा। अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टीज पर असल में 18 प्रतिशत जीएसटी रेट तय किया गया है। लेकिन एेसी प्रॉपर्टीज पर टैक्स 12 प्रतिशत लगेगा, क्योंकि नए डिलेवपर्स को इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति होगी। इनपुट क्रेडिट का मतलब है आउटपुट पर टैक्स देते वक्त आप उस टैक्स को कम कर सकते हैं, जो आपने आउटपुट पर चुकाया है। इसके अलावा मकान मालिकों को भी किराए पर जीएसटी को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। जिन लोगों ने अपनी प्रॉपर्टी रहने के लिए दी है, उस पर जीएसटी नहीं लगाया जाएगा। लेकिन जिन लोगों की प्रॉपर्टी कमर्शियल यूज या इंडस्ट्री के लिए इस्तेमाल हो रही है और उनकी सालाना आय 20 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें 18 प्रतिशत टैक्स चुकाना होगा। राजस्व सचिव डॉ. हसमुख अधिया ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, किराए पर दी गई रिहायशी प्रॉपर्टी से होने वाली कमाई पर जीएसटी लागू नहीं होगा। लेकिन अगर किसी जमीन पर कोई कमर्शियल बिजनेस चल रहा है और उससे सालाना कमाई 20 लाख से ज्यादा हो रही है तो उस पर 18 प्रतिशत टैक्स लगेगा।
क्या रेडी टू मूव घरों पर कितना होगा GST?
डिवेलपर्स को फुल सेट अॉफ इनपुट क्रेडिट का जो विकल्प अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स पर मिलेगा, वह रेडी टू मूव फ्लैट्स पर लागू नहीं होगा। इसका सीधा मतलब है कि रेडी टू मूव फ्लैट्स खरीदने वाले ग्राहकों को इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। हीरानंदानी ग्रुप के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर सुरेंद्र हीरानंदानी के हवाले से न्यूज एजेंसी पीटीआई ने लिखा, जो प्रोजेक्ट्स अंडर कंस्ट्रक्शन हैं, उन पर डेवलपर्स कुछ फायदा हासिल कर सकते हैं। लेकिन उन्हें रेडी टू मूव प्रोजेक्ट्स पर टैक्स चुकाना होगा।
दूसरी ओर सरकार ने डिवेलपर्स से कहा है कि जीएसटी के तहत उन्हें जो फायदा मिल रहा है, उसे वह घर खरीदने वालों तक भी पहुंचाएं। एक बयान में सरकार ने कहा, बिल्डरों से उम्मीद है कि वह जीएसटी के तहत कम टैक्स का फायदा प्रॉपर्टी खरीदने वालों को कम कीमत या किश्तों के रूप में देंगे। सरकार ने सभी बिल्डरों और कंस्ट्रक्शन कंपनियों से कहा है कि वह अंडर कंस्ट्रक्शन फ्लैट्स में कंज्यूमर्स को जीएसटी लागू होने के बाद ज्यादा टैक्स चुकाने को न कहें।
भारत में जीएसटी: राज्य सभा ने 3 और लोकसभा ने 8 अगस्त को सर्वसम्मति से जीएसटी को पास किया था। इसे आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा टैक्स सुधार कहा जा रहा है। जीएसटी काउंसिल ने 3 नवंबर को नई टैक्स दरें तय की थीं। यह 5 प्रतिशत से 28 प्रतिशत के बीच है। जनता की रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर जीएसटी दरों को 5 प्रतिशत जबकि लग्जरी सामान पर 28 प्रतिशत टैक्स लगेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 3 अगस्त को जीएसटी संवैधानिक संशोधन विधेयक राज्य सभा में पेश किया था और इस बिल पर करीब 5 घंटे तक बहस चली थी। जीएसटी के लागू होने के बाद भारत में लगने वाले 17 टैक्स खत्म हो चुके हैं और अब पूरे देश में वन नेशन वन टैक्स सिस्टम है।
रियल एस्टेट पर जीएसटी का असर: साल 2015 में आई ई एंड वाई की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत की कुल जीडीपी में रियल एस्टेट का करीब 5 प्रतिशत हिस्सा होगा। इसे देश का दूसरा सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर बताया गया था। हालांकि यह सेक्टर आर्थिक स्थितियों और राजकोषीय नीतियों के फैसलों का सामना कर रहा है। एेसी ही एक चुनौती इनडायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष करों) के मैनेजमेंट की है, जिसमें वैट, सर्विस टैक्स, एक्साइज, स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस शामिल है।
जीएसटी लागू होने के बाद हर किसी के दिमाग में यही सवाल है कि यह सिस्टम काम कैसे करेगा। चूंकि जीएसटी विभिन्न टैक्सों का एक मिश्रित रूप है, इसलिए यह टैक्स सिस्टम को आसान करेगा, जिससे डबल टैक्स लगने का झंझट खत्म हो जाएगा। इसलिए ग्राहकों के लिए खुश होने का यह स्पष्ट कारण है, चाहे उन्हें थोड़ा ज्यादा भी भुगतान करना पड़े। रियल एस्टेट सेक्टर पर जीएसटी क्या प्रभाव डालेगा, इस पर प्रॉपटाइगर डॉट कॉम के चीफ बिजनेस अॉफिसर (रीसेल) अंकुर धवन कहते हैं, जीएसटी से उम्मीद है कि वह भारत की जीडीपी में दो प्रतिशत का इजाफा करेगा। यह अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा। उन्होंने कहा, अगर अर्थव्यवस्था अच्छा करेगी तो रियल एस्टेट में डिमांड बढ़ेगी और यह इस सेक्टर को और फायदा पहुंचाएगा।
क्या ग्राहक थोड़े ज्यादा जीएसटी रेट को स्वीकार करेंगे? : रेडी टू मूव इन प्रॉपर्टीज के लिए ग्राहकों को कोई भी इनडायरेक्ट टैक्स का भुगतान नहीं करना है, इसलिए रीसेल प्रॉपर्टी के खरीदारों पर जीएसटी का असर बहुत कम होगा। वहीं निर्माणाधीन प्रॉपर्टी की ट्रांजेक्शन में ग्राहकों को वैट और सर्विस टैक्स देना पड़ेगा। वैट राज्य सरकार लेती है और इसकी दरें हर राज्य में अलग-अलग होती हैं। वहीं सर्विस टैक्स केंद्र सरकार लेता है, जिसकी दर 15 प्रतिशत है। कुल मिलाकर, घर खरीद पर टैक्स कम नहीं हैं और इसमें सिरदर्द पैदा करने वाली कई उलझनें मौजूद हैं। निर्माणाधीन संपत्तियां खरीदने वाले ज्यादातर ग्राहक इसके लिए होम लोन लेते हैं और इसकी प्रक्रिया में शामिल गणित भी बहुत जटिल होता है। ज्यादातर मामलों में ग्राहक उन करों के बारे में गहराई से नहीं पता करते जो उन्हें अतिरिक्त देने होते हैं। वह अपना इन्वेस्टमेंट प्लान प्रॉपर्टी की कीमत को लेकर ही बनाते हैं।
वहीं उदाहरण के तौर पर वैट में यह साफ है कि किस स्तर पर कितनी रकम देनी है और कौन का हिस्सा डिवेलपर ने ग्राहक को दे दिया है। अगर रियल स्टेट में सभी राज्य वैट लगा रहे हैं तो ग्राहक को उन्हीं क्लॉज पर भरोसा करना चाहिए, जो बिक्री समझौते में लिखी हुई हैं। हालांकि किसी भी तरह का रिसर्च ग्राहक को सही रेट पता करने में मदद नहीं कर सकता। सरकारी दस्तावेज काफी बड़े होते हैं और अगर आप प्रोफेशनल चार्टेट अकाउंटेंट नहीं हैं तो आप इन दस्तावेजों में खो सकते हैं और ज्यादा जानकारी फिर भी हासिल नहीं होगी। दूसरी ओर, अगर एक टैक्स के लिए स्पष्ट दरें हैं, जिसमें वह हर चीज शामिल है, जिसका भुगतान प्रशासन को किया जाना है तो यह ग्राहक के लिए सुविधाजनक होगा। एेसे मामले में थोड़ी ज्यादा दरें भी ग्राहक को स्वीकार होंगी।
बिल्डर्स को जीएसटी क्यों पसंद आएगा?: जीएसटी से उम्मीद है कि यह बिल्डर्स के लिए प्रोजेक्ट की लागत में गिरावट लाएगा। इसका मतलब है कि घर और भी सस्ते होंगे। खरीद पक्ष में बिल्डर कई तरह के टैक्स जैसे कस्टम ड्यूटी, सेंट्रल सेल्स टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, एंट्री टैक्स भरता है। इन्हें बाद में फ्लैट यूनिट की अंतिम कीमत पर पारित कर दिया जाता है और ग्राहक पर भी। जीएसटी के कारण सारे टैक्स एक के तहत आ जाएंगे, जिससे निर्माण की लागत में गिरावट आएगी। इससे न सिर्फ बाजार में ज्यादा नकदी आएगी, बल्कि घर बिकने में भी तेजी आएगी।
अंकुर धवन के मुताबिक एेसे बहुत सारे बिल्डर्स हैं, जो प्रोजेक्ट्स का निर्माण कर रहे हैं और इन पर मौजूदा समय में दोहरा कर लगा हुआ है। इन सबका खर्च जो वह वहन करते हैं वह मटीरियल की लागत का करीब 20-25 प्रतिशत होता है। वहीं जीएसटी रेट से यह करीब 12 से 18 प्रतिशत के बीच आ जाएगा, जिससे निर्माण की लागत में कमी आएगी। इसके अलावा ग्राहकों के लिए भी यह अच्छा है, क्योंकि बिल्डर इसका फायदा उन तक पहुंचा पाएंगे।
डिवेलपर्स के लिए चालू कर प्रभाव कच्चे माल पर इनपुट टैक्स क्रेडिट के कारण मौजूदा टैक्स से कम होगा, जो बिल्डर को स्टील और सीमेंट पर टैक्स चुकाने के एवज में मिलता है। स्टील पर इनडायरेक्ट टैक्स करीब 17 प्रतिशत था, जबकि जीएसटी में यह 18 प्रतिशत है। इसी तरह सीमेंट पर 24 प्रतिशत टैक्स था, जो जीएसटी के तहत 28 प्रतिशत लगेगा। वहीं वर्क कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए जीएसटी की दरें 12 प्रतिशत तय की गई हैं।
केवी डिवेलपर्स के डायरेक्टर और NAREDCO गवर्निंग काउंसिल के सदस्य अमन अग्रवाल ने कहा, इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी न सिर्फ भारतीय इंडस्ट्री बल्कि रियल एस्टेट सेक्टर के लिए गेम चेंजर साबित होगा। 16 अहम टैक्स और लेवी को हटाकर एक टैक्स को पूरे देश में लागू किया गया है। इससे दोहरे कर लगने की प्रक्रिया को रोका जा सकेगा। जीएसटी के जरिए सभी डोमेन्स में ट्रांजेंक्शन में पारदर्शिता आएगी, जो रियल एस्टेट के लिए एक वरदान की तरह है। साथ ही यह इस सेक्टर में बेहतर नियंत्रण और निगरानी के लिए एक ऑडिट ट्रायल भी मुहैया कराएगा।
जीएसटी को लेकर कब क्या हुआ:
-मार्च 17 को जीएसटी काउंसिल ने 4 बिलों को मंजूरी दी थी। इसके अलावा कैबिनेट ने भी इन्हें पास कर दिया था। इनके अलावा काउंसिल ने लग्जरी कारों और गैस भरी हुई ड्रिंक्स पर 15 प्रतिशत सेस लगाने के प्रोपोजल को भी क्लीयरेंस दे दी थी। प्रोपोजल के तहत सिगरेट पर 290 प्रतिशत सेस लगाया गया था। सभी चार बिलों को काउंसिल ने मंजूरी दी थी, जिसमें राज्य जीएसटी (एसजीएसटी), केंद्र शासित प्रदेश जीएसटी, सेंट्रल जीएसटी, इंटीग्रेटेड जीएसटी और मुआवजा कानून शामिल हैं।
7 मार्च 2017 को सरकार ने यह साफ कर दिया था कि जीएसटी के तहत प्रॉपर्टी की कीमत में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी न हो। CREDAI कॉन्क्लेव के दो दिवसीय सम्मेलन में पूर्व शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा था कि प्रॉपर्टी, खासकर घरों की कीमतों में नए टैक्स के तहत इजाफा नहीं होगा। उन्होंने कहा, हमने पहले से ही किफायती आवास को सर्विस टैक्स से छूट दे दी है और मेरा मंत्रालय जीएसटी के तहत भी इस छूट को बरकरार रखेगा। उन्होंने कहा था कि हमने वित्त मंत्रालय से सिफारिश की है कि इस क्षेत्र में टैक्स दरें ज्यादा न रखी जाएं।
17 जनवरी 2017 को केंद्र और राज्य सरकारों ने जीएसटी के तहत करदाताओं पर नियंत्रण के लिए अधिकारों का बंटवारा करने का फैसला लिया गया था। जीएसटी काउंसिल की नौवीं बैठक में आम सहमति से तय हुआ था कि राज्य 1.5 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर के तहत आने वाले 90 फीसदी करदाताओं का मूल्यांकन और नियंत्रण करेंगे। अन्यों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होगा। दूसरी ओर जिन करदाताओं का सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ से ज्यादा है, वहां केंद्र और राज्य का रेश्यो 50-50 होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार 1 अप्रैल से पूरे देश में जीएसटी लागू करना चाहती थी, लेकिन यह 1 जुलाई से लागू हो सका।
17 अक्टूबर 2016 को हुई तीसरी मीटिंग में जीएसटी काउंसिल ने नई टैक्स व्यवस्था के लिए 4 टीयर स्ट्रक्चर का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्तावित व्यवस्था में 6 प्रतिशत की कम दर, 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की दो मानक दर और 26 प्रतिशत की उच्च दर होगी। साथ ही लग्जरी सामानों पर अतिरिक्ट सेस भी लगेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इनडायरेक्ट टैक्स सिस्टम के तहत ज्यादा दरों की सर्विस पर टैक्स 18 प्रतिशत रखने का प्रस्ताव है, जबकि जरूरी सेवाओं पर 6 से 12 प्रतिशत के बीच टैक्स लगाया जा सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक टैक्स के तहत आने वाली 70 वस्तुओं पर प्रस्तावित टैक्स 18, 12 या 6 प्रतिशत हो सकता है, जबकि 50 वस्तुओं पर 12 ओर 18 प्रतिशत टैक्स लगाने का प्रस्ताव है।
जीएसटी नियमों का ड्राफ्ट 27 सितंबर को केंद्र और राज्यों की बैठक से पहले बहस के लिए रखा गया। जीएसटी रेग्युलेशंस पर बातचीत करने के लिए बैठक 30 सितंबर को हुई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने ड्राफ्ट नियमों से जुड़े रजिस्ट्रेशन, इनवॉइसिंग, प्रोसिजर और गाइडलाइंस पर 28 सितंबर तक फीडबैक मांगा था। राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने ट्विटर पर एक पोस्ट में लिखा था कि रजिस्ट्रेशन, पेमेंट, इनवॉइस इत्यादि के ड्राफ्ट नियम CBEC की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं। बिजनेस समुदाय के लोग इसे देखकर तुरंत 28 की रात तक अपनी प्रतिक्रिया gst-cbec@gov.in पर दे सकते हैं। उन्होंने लिखा, हम चाहते हैं कि इन नियमों को जीएसटी परिषद 30 सितंबर को अपनी बैठक में मंजूरी दे दे, ताकि बिजनेस सिस्टम्स को सबके लिए मॉडिफाई किया जा सके।
यह भी जानें: भारत में जीएसटी की शुरुआत का संवैधानिक विधेयक, जिसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 8 सितंबर को मंजूरी दी थी, उसे 10 सितंबर को संविधान (101 संशोधन) अधिनियम, 2016 के रूप में अधिसूचित किया गया। संशोधित संविधान के आर्टिकल 279ए (1) के मुताबिक आर्टिकल 279ए की 12 सितंबर से शुरुआत होते ही जीएसटी काउंसिल का गठन राष्ट्रपति को 60 दिनों के भीतर करना है।
संशोधित संविधान के आर्टिकल 279ए के मुताबिक जीएसटी काउंसिल केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त फोरम होगा, जिसमें ये सदस्य होंगे:
चेयरपर्सन- केंद्रीय वित्त मंत्री
सदस्य-वित्त राज्य मंत्री
अन्य सदस्य-हर राज्य सरकार द्वारा नामांकित कोई मंत्री या वित्त एवं कराधान का प्रभारी मंत्री।
यह काउंसिल केंद्र एंव राज्य सरकारों से जीएसटी से जुड़े अहम मुद्दों पर सिफारिश करेगी, जिन्हें जीएसटी में रखना या हटाना है।