चेक बाउंस होने पर जाना पड़ सकता है सलाखों के पीछे, इन मामलों से लें सबक
August 29, 2017 |
Sunita Mishra
भारत में वित्तीय अपराधों के कारण कई बड़ी कंपनियों का सब कुछ लुट गया। रियल एस्टेट डिवेलपर्स भी इसमें शामिल हैं, लेकिन छोटे अपराधी पर नजर नहीं रखी गई, एेसा नहीं है। साल 2017 में किंगफिशर एयरलाइंस के पूर्व वित्तीय अधिकारी को जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड द्वारा उनके और कंपनी के बॉस विजय माल्या के खिलाफ दायर दो चेक बाउंस के मामले में एक अदालत ने 18 महीने की कारावास की सजा सुनाई थी।
इस उदाहरण से हमें पता चलता है कि क्यों चेक बाउंस से जुड़े मामलों को हलके में नहीं लेना चाहिए। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी अपने बजट भाषण में कहा था कि भारत सरकार ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में संशोधन किया है ताकि चेक बाउंस से पीड़ित लोगों को पैसा मिल सके। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि सरकार चेक बाउंस के मामलों को गैर-जमानती अपराध बनाने को लेकर नियमों में संशोधन कर सकती है। फिलहाल यह किया जाना बाकी है, लेकिन देश की विभिन्न अदालतों ने चेक बाउंस से जुड़े मामलों पर चिंता जताते हुए इससे जुड़े अपराधों के बारे में लोगों को समझने को कहा है।
अगर आप डिवेलपर को चेक जारी करते हैं और खाते में पर्याप्त राशि न होने के कारण बैंक इसे पूरा नहीं कर पाता तो आपके लिेए समस्या पैदा हो सकती है। यह अपराध बार-बार करने पर आपको जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।
दिल्ली की एक अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि चेक जैसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट की साख बनाए रखने के लिए किसी भी तरह के लेनदेन में पड़ने से पहले सजा का सिद्धांत लागू किया जाना है। जज ने यह भी कहा कि मुझे करावास की सजा देने में कोई कमजोरी महसूस नहीं हुई।
आइए चेक बाउंस से जुड़े मुद्दों पर कोर्ट के आदेशों पर नजर डालते हैं। लेकिन उससे पहले इन बातों पर ध्यान दें:
*जो शख्स चेक जारी करता है उसे कानूनी तौर पर चेक जारी करने वाला कहा जाता है।
*जिसे भुगतान किया जाना है उसे अदाकर्ता कहा जाता है।
*जिस शख्स को पैसा किसी साधन के जरिए दिया जाना है, उसे अदाता कहा जाता है।
दोहरा झटका: दिल्ली हाई कोर्ट ने चेक बाउंस से जुड़े मामले में आदेश दिया कि सिविल और क्रिमिनल दोनों मामले साथ-साथ चल सकते हैं।
केस स्टडी: कीर्ति प्रेमराज जैन बनाम मोजर बेयर क्लीन एनर्जी केस में प्रेमराज ने तीन बिना तारीखों वाले चेक साल 2011 में गुजरात में जमीन खरीदने के लिए कंपनी को दिए। कानूनी मुद्दों के कारण बिक्री पूरी नहीं हो पाई। जब आदाता ने तीन चेक जमा किए तो पर्याप्त राशि न होने की वजह से बैंक आगे प्रोसेस नहीं कर पाया और नतीजन चेक बाउंस हो गए। कंपनी ने 30 जनवरी 2013 को सिविल केस फाइल किया, जो वडोदरा सिविल कोर्ट में लंबित है। अदाता ने दिल्ली की साकेत जिला अदालत में भी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत एक मामला दायर किया हुआ है।
जैन ने दिल्ली कोर्ट के समन को खारिज करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में अर्जी दी, जिसमें तर्क दिया गया कि चेक अडवांस के एवज में सिक्योरिटी थे, कानूनी तौर पर लागू करने योग्य कर्ज नहीं। हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी और कहा कि अपराध से जुड़ी हर चीज इस केस में है। कोर्ट ने आदेश दिया कि गुजरात का सिविल केस और दिल्ली का आपराधिक मामला साथ-साथ चल सकते हैं।
सवाल बन जाते हैं मुश्किल: चेक बाउंस से जुड़े मुद्दे कोर्ट के लिए भी सिरदर्द बन जाते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले साल चेक बाउंस से जुड़े सवालों को बड़ी बेंच को रेफर किया। इस मामले में देश के न्यायालयों का रुख अलग-अलग है।
केस स्टडी: मान लीजिए कि किसी ने आपको चेक जारी किया है और वह बाउंस हो जाता है। आप जिला अदालत में जाते हैं, जो अपराधी को बरी कर देती है। तो अब आप कहां जाएंगे-सेशंस कोर्ट या हाई कोर्ट। इस सवाल का जवाब इलाहाबाद हाई कोर्ट के पास भी नहीं था।
अनिल कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में अदाता ने सेशंस कोर्ट में आरोपी के बरी होने को चुनौती दी थी। लेकिन सेशंस कोर्ट ने याचिका पर यह कहते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया कि मामला उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके बाद अदाता ने हाई कोर्ट में अपील की। इस बात पर बहस हुई कि सेशंस कोर्ट के जज का नजरिेया गलत था। एक जज वाली इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच ने पाया कि मामले में कानून साफ नहीं है, लिहाजा मामला बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि अगर एक सामान्य लेनदेन पर कई सारे चेक जारी किए गए हैं और वह बाउंस हो जाते हैं तो कारावास की सजा साथ-साथ चल सकती है, एक के बाद एक नहीं।
केस स्टडी: श्याम पाल बनाम दयावती मामले में दयावती ने श्यामलाल से दो बार 5 लाख रुपये लिए। पाल ने दयावती को लगातार नंबरों से दो चेक दिए, लेकिन पर्याप्त बैलेंस न होने के कारण वे बाउंस हो गए। अदाता ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के सेक्शन 138 के तहत ट्रायल कोर्ट में अर्जी दी। कोर्ट ने हर चेक बाउंस के लिेए 10 महीने की सजा सुनाई यानी 20 महीने। श्यामलाल ने अपील करते हुए कहा कि शिकायत लगातार लेनदेन के कारण पैदा हुई है, लिहाजा सजा भी साथ-साथ होनी चाहिए, एक के बाद एक नहीं। उसकी अर्जी को अपील कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट दोनों ने खारिज कर दिया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दोनों आदेशों को रद्द कर कहा कि आरोपी की सजा साथ-साथ चलेगी। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक क्रिमिनल प्रोसिजर कोड का इस्तेमाल जज के विवेक पर निर्भर करता है और इसे मामले की परिस्थितियों के अनुसार इस्तेमाल किया जाना चाहिए।