जानिए मुस्लिम, हिंदू और ईसाई धर्म की महिलाओं का कितना होता है पति की संपत्ति में हिस्सा
December 12, 2016 |
Shaveta Dua
दुनिया के अन्य देशों की तरह भारतीय महिलाओं के प्रॉपर्टी अधिकारों को लेकर भी कट्टरपंथियों और सुधारवादियों के बीच रस्साकशी चलती रहती है। अन्य देशों की औरतों की तरह भारतीय महिलाओं को भी अपना अधिकार पूरी तरह नहीं मिला है।
चूंकि भारत में विभिन्न धर्म एवं संस्कृतियां हैं। इसलिए प्रॉपर्टी के मामले में भी कोई समान कानून नहीं है और हर धर्म के अपने निजी कानून हैं। जहां हिंदू (सिख, बौद्ध और जैन) एक कानून के तहत आते हैं। वहीं क्रिश्चियन इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 का पालन करते हैं। जबकि मुसलमानों ने संपत्ति और विवाह से संबंधित मामलों पर अपने निजी कानून को संहिताबद्ध नहीं किया है। अगर संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय महिलाओं के संपत्ति अधिकार उसके धर्म, वह देश के किस हिस्से से है, शादीशुदा है या कुंवारी है, से तय किए जाते हैं।
तलाक के मामले में:
मुस्लिम महिलाएं: संविधान के आर्टिकल 14 और 15 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करते हुए अगर मुस्लिम महिला को पति तलाक दे दे तो वह कुछ नहीं कर सकती। उसका पति इद्दत के दौरान उसकी देखभाल करने के लिए उत्तरदायी है। डैनियल लतीफी बनाम भारत सरकार मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन अॉफ राइट्स अॉन डायवोर्स एक्ट के सेक्शन 3 में कहा गया कि इद्दत अवधि के बाद भी गुजारा-भत्ता दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक महिला दोबारा शादी नहीं करती वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पूर्व पति से गुजारा-भत्ता मांग सकती है। लेकिन शरियत के मुताबिक इद्दत अवधि के बाद गुजारा-भत्ता लेना या देना हराम (अवैध) है, क्योंकि इद्दत अवधि खत्म होने के बाद पुरुष और महिला का रिश्ता समाप्त हो जाता है।
अगर तलाकशुदा महिला और उसका बच्चा खुद की देखभाल नहीं कर सकते तो पति को उन्हें मासिक भत्ता देना होगा। जहां तक प्रॉपर्टी मिलने की बात है तो मुस्लिम महिला को अपने पति से वह दहेज लेने का हक है जो उसे शादी के वक्त मिला था। अगर पति चाहे तो वह पत्नी को कुछ भी दे सकता है, लेकिन इसके लिए वह बाध्य नहीं है।
साल 2016 में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, "महिलाएं पितृसत्तात्मक ढांचे की दया पर निर्भर नहीं रह सकतीं, जो मौलवियों द्वारा स्थापित किया गया है, जिनकी पवित्र कुरान की अपनी व्याख्या है। किसी भी समुदाय के निजी कानून संविधान में दिए गए अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते''।
हिंदू महिलाएं: जब संपत्ति के विभाजन की बात आती है तो हिंदू महिला अपने पति की संपत्ति की सह-मालिक होती है, भले ही प्रॉपर्टी उसके नाम भी न हो। तलाक के वक्त महिला को पति की संपत्ति का 50 प्रतिशत हिस्सा दिया जाएगा। हर मामले में हिस्सा अलग-अलग होता है। जहां तक स्त्रीधन की बात है (वह संपत्ति जो उसे शादी के वक्त दोनों पक्षों से मिली थी) वह उसकी भी मालिक है।
ईसाई महिला: इंडियन डायवोर्स एक्ट के मुताबिक जिस अवधि में मुकदमा अदालत में है, पति को अपनी सैलरी का पांचवा हिस्सा बतौर गुजारा भत्ता पत्नी को देना होगा। बाद में गुजारा-भत्ता सालाना या निर्वाह-धन के तौर पर दिया जा सकता है। अगर क्रिश्चियन महिला तलाक के बाद खुद का खर्चा नहीं चला सकती तो वह सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट में गुजारा-भत्ते की अर्जी डाल सकती है। इसके बाद पति को कोर्ट के आदेश पर इंडियन डायवोर्स एक्ट, 1869 के एस.37 के तहत पत्नी के जिंदा रहने तक उसे गुजारा-भत्ता देना होगा।
छोड़े जाने की स्थिति में
मुस्लिम महिला: एक मुस्लिम महिला अपने पति से रखरखाव पाने की हकदार है। अगर पति उसे गुजारा-भत्ता नहीं देता तो वह कोर्ट जा सकती है। मजिस्ट्रेट महिला के रिश्तेदारों से उसकी देखभाल करने को कह सकता है। अगर वह इसके लिए तैयार नहीं होते तो वक्फ बोर्ड को महिला के बच्चे के कमाने तक उसकी देखभाल करनी पड़ती है।
हिंदू महिला: हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956 के मुताबिक अगर हिंदू महिला फिर से शादी नहीं करती तो वह गुजारा-भत्ते की हकदार है। गुजारा-भत्ते का आदेश देने से पहले कोर्ट कई बातों पर अमल करता है।
ईसाई महिला: अगर किसी ईसाई महिला को उसका पति छोड़ देता है तो वह उससे गुजारा-भत्ता पाने की हकदार है। अगर पति यह नहीं देता तो तलाक मिल सकता है। तलाक पाने के लिए एक ईसाई महिला को पति से दो साल अलग रहना पड़ेगा।
पति की मौत के बाद
मुस्लिम महिला: अगर किसी मुस्लिम महिला के पति का निधन हो जाए तो उसे एक-आठवां हिस्सा (अगर बच्चे हैं तो) दिया जाएगा। लेकिन अगर बच्चे नहीं हैं तो एक-चौथाई। अगर एक से ज्यादा पत्नियां हैं तो हिस्सा एक-सोलहवें तक जा सकता है।
हिंदू महिला: पति की मौत के बाद उसकी संपत्ति पर पत्नी,बच्चों और सास की तरह समान अधिकार होगा। 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था कि विधवा ने अगर दूसरी शादी की है तो वह अपने मृत पति की संपत्ति से हिस्सा भी रख सकती है।
क्रिश्चियन महिला: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के अनुसार, एक विधवा ईसाई महिला अपने गुजरे हुए पति की प्रॉपर्टी का एक-तिहाई हिस्सा पाने की हकदार है। बाकी उसके बच्चों को मिलेगा। अगर बच्चे नहीं हैं तो विधवा को 5000 रुपये और आधी संपत्ति दी जाएगी। वंशज के होने या न होने की दिशा में पत्नी का हिस्सा ऊपर-नीचे हो सकता है। उदाहरण के तौर पर अगर पति के पिता के भाई या उनका बेटा नहीं है तो महिला को पूरी संपत्ति मिल जाएगी। लेकिन एक विधवा बहू को अपने ससुर की संपत्ति में कुछ नहीं मिलेगा।