बेंगलुरु शहर की सूरत बदल देगा पेरिफेरल रिंग रोड प्रोजेक्ट
January 03 2019 |
Surbhi Gupta
बेंगलुरु का चर्चित पेरिफेरल रिंग रोड प्रोजेक्ट एक बार फिर पटरी पर आ गया है। केंद्र सरकार ने उसे भारत माला परियोजना में शामिल करने का फैसला किया है। इससे पहले बेंगलुरु डिवेलपमेंट अथॉरिटी (बीडीए ) और नेशनल हाईवे अथॉरिटी अॉफ इंडिया (एनएचएआई) के बीच इस प्रोजेक्ट को लेने के लिए रस्साकशी चल रही थी। एक तरफ एनएचएआई सरकार से यह प्रोजेक्ट सौंपने को कह रहा था, वहीं बीडीए की दखलअंदाजी विकास में रोड़े डाल रही थी। अब केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट का बीड़ा उठाया है। इसे लेकर प्रोजेक्ट की विस्तृत रिपोर्ट का आदेश दिया जा चुका है। वहीं प्रशासन मुआवजा और फंडिग की तैयारियां कर रहा है।
क्या है भारतमाला परियोजना: इस महत्वकांक्षी परियोजना को भारत माला नाम दिया गया है, ताकि हाईवे और सड़कों के नेटवर्क की कनेक्टिविटी सुधारी जा सके। इसमें सीमाओं, तटीय इलाके, पर्यटक स्थल, धार्मिक स्थलों और जिला मुख्यालयों के साथ 25000 किलोमीटर के हाईवे बनाने की योजना है। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत करीब 500 बिलियन रुपये है। यह सागरमाला प्रोजेक्ट का विस्तारित रूप है, जिसे देश में बंदरगाहों को आपस में जोड़ने के लिए शुरू किया गया है।
पेरिफेरल रिंग रोड क्यों जरूरी है?
चूंकि आउट रिंग रोड (ओआरआर) पर अकसर जाम रहता है, इसलिए रोजाना आने जाने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एक बार पेरिफेरल रिंग रोड बनने के बाद इलेक्ट्रॉनिक सिटी, सरजापुर रोड वाया बेलारी रोड और केआर पुरम से शहर के उत्तर की ओर आने वाले लोगों को एक अन्य रास्ता मिल जाएगा। इसके अलावा ओआरआर, वाइट फील्ड संकुचित हो चुके हैं और उन्हें रेडी टू मूव अॉफिस स्पेस की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा सरजापुर रोड रियलिटी स्पिलओवर मांग से फायदा उठा सकती है। इससे पहले ओरआरआर ने बेंगलुरु में रियल एस्टेट मार्केट और कीमतों को बढ़ावा दिया था। पीआरआर से उम्मीद है कि वह रिटर्न संभावनाएं में सुधार लाएगा। हालांकि अब तक फंडिंग के माध्यम साफ नहीं हैं। इसका कुल बजट 41 हजार करोड़ रुपये है, जिसके लिए विभिन्न व्यवसाय मॉडल पर विचार किया जा रहा है। सरकार पीपीपी या हायब्रिड मॉडल पर भी विचार कर रही है, जिसमें डिवेलपर प्रोजेक्ट का 60 प्रतिशत खर्चा उठाता है और बाकी का भुगतान सरकार करती है। चूंकि वित्त का जोखिम सरकार शेयर करेगी, इसलिए बोली लगाने वाले भी आकर्षित होंगे।
बेंगलुरु के रियल एस्टेट की स्थिति लगातार सुधर रही है और अन्य शहरों की तुलना में यहां लुभावने रिटर्न्स भी मिल रहे हैं। आर्थिक रूप से मालामाल और शानदार क्लाइमेट ने हमेशा ही लोगों को बेंगलुरु की ओर आकर्षित किया है। लेकिन समय के साथ जनसंख्या बढ़ने के कारण मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ने लगा है। ट्रैफिक जाम, गाड़ियों में से निकलता प्रदूषण और भीड़ भरे गलियारों ने बेंगलुरु की शांति भंग कर दी है। इस वजह से एक अन्य विस्तार की जरूरत महसूस हुई और अधिकारियों का पहला काम एक कॉरिडोर बनाना था, जो मौजूदा आउटर रिंग रोड (ORR) की रूपरेखा करता है। अब शहर ओआरआर के परे तक फैल गया है। इसलिए एक पेरिफेरल रिंग रोड (पीआरआर) नाम की सड़क पर विचार किया गया। लेकिन जल्द ही यह प्रोजेक्ट जमीन अधिग्रहण और एनवायरनमेंट क्लियरेंस के चक्करों में फंस गया। अब करीब 9 वर्षों बाद प्रोजेक्ट को अधिकारियों से एनवायरनमेंट क्लियरेंस मिला है। वहीं हालिया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से जमीन अधिग्रहण के मामलों के भी जल्द निपटने की उम्मीद है।
प्रोजेक्ट का ले आउट: पेरिफेरल रिंग रोड को बेंगलुरु शहर के बॉर्डर तक फैलाने की कल्पना की गई थी। पीआरआर का पहला चरण शहर से बाहर निकलने वाली छह अन्य सड़कें से होते हुए होसूर रोड से टुमकुर रोड को जोड़ता है। इन सड़कों पर डोडडाबालपुर रोड, बेलारी रोड, ओल्ड मद्रास रोड और सरजापुर रोड है। इसके अलावा वर्तमान एनआईसी रिंग रोड के साथ मिलकर पीआरआर सर्कल को पूरा करेगा। पीआरआर की कुल लंबाई 116 किलोमीटर होने की उम्मीद है, जिसमें से पहला चरण 65 किलोमीटर का इलाका कवर करेगा। इसमें मुख्य मार्ग पर आठ लेन के अलावा दोनों तरफ तीन सड़कें टोल फ्री सर्विस के लिए होंगी।
जमीन अधिग्रहण के प्लान: बीडीए का दावा है कि पहले फेज के लिए 1,920 एकड़ की जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा, जिसकी चौड़ाई 100 मीटर की होगी। इसमें से 75 मीटर मुख्य मार्ग, 6 टोल फ्री लाइन्स और 12 मीटर चौड़ाई बीच के लिए रखी गई है। बाकी की 25 मीटर कमर्शियल डिवेलपमेंट और अन्य सुविधाओं जैसे पानी और बिजली के लिए रखी गई है।
जमीन अधिग्रहण के मुद्दों से निपटने के लिए बीडीए भूमि मालिकों के लिए 3 अलग अॉफर्स लेकर आया है। भूमि मालिक या तो मौजूदा गाइडेंस वैल्यू से दोगुना मुआवजा ले सकते हैं या बीडीए और जमींदारों के बीच क्रमशः 60: 40 स्वामित्व का विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा एक और प्रस्ताव यह है कि अधिग्रहण की हुई भूमि के एक हिस्से के विकास का अधिकार मालिक को दिए जा सकते हैं।
बजट और फंडिंग: विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु के इस प्रोजेक्ट की कीमत करीब 9600 करोड़ रुपये है। इसमें से 3800 करोड़ कंस्ट्रक्शन और बाकी अन्य खर्चों के लिए हैं। 5800 करोड़ भूमि अधिग्रहण के लिए दिए गए हैं। लेकिन बीडीए का अनुमान है कि नए भूमि अधिग्रहण कानून के कारण बजट में इजाफा हो सकता है। वहीं जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जीआईसीए) ने 3800 करोड़ रुपये का फंड देने पर सहमति जताई है।
टाइमलाइन: बीडीए के कुछ सूत्रों का कहना है कि फिलहाल प्रोजेक्ट जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जीआईसीए) से लोन की पहली किस्त का इंतजार कर रहा है। इसके आते ही प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा। हालांकि इसे जितनी आसानी से कहा गया है, उतना यह है नहीं। क्योंकि सोशल इम्पेक्ट सर्वे अब भी नहीं हुआ है और इसके पूरे होने में करीब 6 महीने लगेंगे। इसके बाद जमीन अधिग्रहण का काम होगा, फिर कंस्ट्रक्शन शुरू किया जाएगा। अगर एनआईसीई रोड का मामला याद करें तो प्रोजेक्ट जमीन मालिकों और प्रोजेक्ट कंपनी के मतभेदों के कारण कई वर्षों तक लंबित रहा था। इसलिए चांस है कि पीआरआर के साथ भी यही हो सकता है। फिलहाल यहां टाइमटाइन बताना मुश्किल काम है। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुतािबक इसका काम दिसंबर 2015 से शुरू होना था।
पीआरआर के फायदे: पीआरआर का पहला चरण बेंगलुरु के पास कई राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों जैसे टुमकुर रोड, बेलारी रोड, ओल्ड मद्रास रोड और होसुर रोड को जोड़ेगा। इससे दो मोर्चों पर मदद मिलेगी। पहला इससे आउट रिंग रोड (ओआरआर) पर प्रेशर को कम करेगा, क्योंकि पीआरआर ओआरआर के बाहर प्लान किया गया है। दूसरा यह बेंगलुरु में रियल एस्टेट को बढ़ावा देगी। कहा जा रहा है कि लोग अब बाहरी इलाकों की ओर रुख करने लगे हैं। इसके अलावा पीआरआर बेंगलुरु शहर के विभिन्न बाहरी इलाकों को भी कनेक्ट करेगा। यह बड़े स्तर पर शहर में भीड़ कम करने में भी मदद करेगा।