जानिए क्या है एमसीएलआर और कैसे यह आपकी जिंदगी पर डालेगा असर
September 01, 2017 |
Parul Pandey
बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट्स (बीपीएलआर) से लेकर बेस रेट और अब मार्जिनल कॉस्ट अॉफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट्स (एमसीएलआर), रेट तय करने की पद्धतियों के कारण बैंकिंग सेक्टर कई बदलावों से गुजरा है। हाल ही में रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया यानी आरबीआई ने कहा कि 1 अप्रैल 2016 से कमर्शियल बैंकों की उधार दर तय करने के लिए एमसीएलआर मौजूदा बेस रेट सिस्टम की जगह लेगा। इसमें अगर थोड़ा भी बदलाव होता है तो वह काफी हद तक आम लोगों की खरीदने की क्षमता पर प्रभाव डालेगा। प्रॉपगाइड आपको बताने जा रहा है कि कैसे यह बदलाव जनता की जिंदगी को प्रभावित करेगा।
क्या है एमसीएलआर: यह एक नई उधार दर है, जिस पर अब से लोगों को ऋण दिया जाएगा। इसके चार कॉम्पोनेंट्स हैं:
-मार्जिनल कॉस्ट अॉफ फंड (एमसीएफ): नए लोन बैलेंस पर जो ब्याज दर होती है, उसे एमसीएफ कहा जाता है। बैंकों के लिए अपने नेट वर्थ पर यह उधार लेने और चुकाने की सीमांत लागत है।
निगेटिव कैरी अॉन अकाउंट अॉफ कैश रिजर्व रेश्यो: सीआरआर वह राशि है, जो बैंकों को आरबीआई के पास रखनी पड़ती है। एेसे फंड्स की लागत को निष्क्रिय रखा जाता है और लोगों को दिए गए ऋण से वसूला जाता है।
अवधि का प्रीमियम: यह वह अमाउंट होता है जो लोन की अवधि के साथ बढ़ता जाता है।
अॉपरेटिंग कॉस्ट: यह लोन प्रॉडक्ट्स मुहैया कराने की लागत होती है, जिसमें फंड जुटाने और बैंकिंग बिजनेस को संचालित करने की कीमत भी शामिल होती है।
आरबीआई ने कमर्शियल बैंकों से मासिक या वार्षिक एमसीएलआर रेट्स तय करने को कहा है। इसका मतलब है कि आपके पास पूर्व-निर्धारित समय पर होम लोन की नई ब्याज दरें होंगी। क्रेडिट रिस्क और लोन की अवधि को देखते हुए बैंकों को अपना फैलाव एमसीएलआर से ज्यादा करने की भी अनुमति दी गई है।
क्या है कॉन्सेप्ट: मार्जिनल का मतलब होता है अतिरिक्त। उधार दर की गणना करते हुए, बैंकों को अतिरिक्त या बदली हुई लागत स्थिति पर विचार करना होगा, जो एमसीएलआर को प्रभावित करेगा। इसलिए अगर आप फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लेने की योजना बना रहे हैं, तो इसे अब एमसीएलआर से जोड़ा जाएगा। सलाह यह भी दी जाती है कि फ्लोटिंग लोन रेट अग्रीमेंट के पूर्व निर्धारित अंतराल के रीसेट क्लॉज को भी देख लेना चाहिए। एमसीएलआर दरों में बदलाव होने की स्थिति में अगर बैंक ने होम लोन ब्याज दर के लिए 6 महीने की फ्रीक्वेंसी तय कर दी है तो हर 6 महीने बाद दरों को रीसेट किया जाएगा।
मौद्रिक नीतियों का प्रभाव: मौद्रिक नीतियों पर एमसीएलआर का प्रमुख प्रभाव यह है कि बैंकों को इसकी गणना करते समय रेपो रेट में बदलाव पर विचार करना होगा। इससे पहले बेस रेट सिस्टम के तहत, रेपो रेट में कभी-कभी कटौती की जाती थी, क्योंकि इसमें पूर्व निर्धारित अंतराल का खंड नहीं था। मगर अब एमसीएलआर के साथ इस खंड के आधार पर बैंकों को मासिक या वार्षिक ब्याज की दर को फिर से बदलना होगा। इसलिए विभिन्न अंतरालों पर एमसीएलआर में संशोधन रेपो रेट को भी ध्यान में रखेगा।
इसके अलावा क्या : अब एमसीएलआर और ऋण दरों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी, जिससे उधार लेने वालों को कम शुल्कों का फायदा उठाने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे बैंक की ऋण दरों को निर्धारित करने के तरीकों में सुधार और पारदर्शिता आएगी। उधार लेने वाले और देने वालों के लिए भी एमसीएलआर एक सही उधार दर है। हालांकि उधार लेने वालों को अलग-अलग तारीखों पर बदलती एमसीएलआर दरों के कारण थोड़ी कन्फ्यूजन हो सकती है। इसके कारण उनकी प्लानिंग पर भी असर पड़ सकता है।